Sambhog(Sex) Me Stri Ko Santusht Kaise Karen?
संभोग में स्त्री को संतुष्ट कैसे करें?
स्त्री और पुरूष का संभोग में समान रूप से आनंदित होना :
संभोग का अर्थ है- वह भोग या आनंद जो दोनों पक्षों(नायक-नायिका) को समान रूप से आये। जहां ऐसा नहीं होता और नायक-नायिका को समान रूप से आनंद नहीं आता है, उसे मैथुन तो कह सकते हैं, लेकिन संभोग नहीं कहा जा सकता है। यही एक छोटा-सा अंतर है संभोग और और मैथुन के शाब्दिक अर्थ में। अन्यथा संभोग और मैथुन में स्त्री और पुरूष दोनों तो स्खलित होते ही हैं, जिस कारण संभोग और मैथुन दोनों को एक-दूसरे का पर्याय मान लेते हैं, जबकि दोनों सूक्ष्मान्तर है।
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इसे सूक्ष्मता से समझना होगा। औद्यालिक जैसे विद्वान का भी कहना है कि संभोग में स्त्री-पुरूष के आनंद में भिन्नता होती है। औद्यालिक अनुसार पुरूष स्खलित होने के बाद शांत हो जाता है, लेकिन स्त्री, पुरूष के स्खलित होने के बाद भी कुछ देर तक चिपकी रहती है।
जबकि अन्य कामाचार्यों का और सफल नायकों का अनुभव है कि मैथुन के समय यदि एक साथ दोनों स्खलित होते हैं, तो शांत भी साथ-साथ ही होते हैं। इसे दूसरे शब्दों में यूं कहना उचित होगा कि स्त्री(नायिका) भी अपने स्खलन के बाद वैसे ही शांत होती है, जैसे पुरूष स्व-स्खलन होने के बाद। स्खलित होने पर जैसे कुछ देर के लिए ही सही, पुरूष शांत और संतुष्ट हो जाता है।
ठीक, उसी प्रकार नायिका भी स्वस्खलन के बाद शांत हो जाती है और अगले ही क्षण उसे भी मैथुन की इच्छा नहीं होती। यदि अपवादस्वरूप नायिका संभोग के लिए तैयार हो जाती है, तो भूल से ये न समझ लें कि सचमुच तैयार हो गई है। बल्कि यूं समझें कि वह अपने नायक के प्रस्ताव को ठुकाराना नहीं चाहती है। यह होता भी तभी है, जब नायिका न चाहकर भी रूचि से मैथुन में भाग लेती है, बल्कि जहां तक संभव हो अपने स्खलन को प्रकट भी नहीं करती है। इस रहस्य को ज्ञात करने के लिए मात्र काम साहित्य(कामशास्त्र) ही नहीं, ‘त्रिया रहस्य’ को भी जानना आवश्यक होगा।
मेरे मतानुसार संभोग में दोनों को(नायिका-नायक की) समान रूप से आनंद की अनुभूति होती है, इसीलिए दोनों इस आनंद की प्राप्ति के लिए इच्छुक भी समान रूप से होते हैं। यही कारण है कि एक पक्ष के अभाव में नायक या नायिका हस्तमैथुन का सहारा लेते हैं।
संभोग में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
किसी भी कार्य को समुचित ढंग से करने के लिए विशेष ज्ञान की आवश्यकता होती है। संभोग भी एक ऐसा पुनीत कार्य है, जिसमें दक्ष होकर ही दक्षतापूर्वक सम्पादित किया जा सकता है। इसमें पुरूष को ही पहल करनी पड़ती है, इसलिए पुरूष को इस संबंध में पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।
1. संभोग के प्रथम आवृति में पुरूष शीघ्र उत्तेजित हो जाता है और शीघ्र स्खलित भी हो जाता है। जबकि स्त्रियां पहली बार देर से उत्तेजित होती हैं और स्खलित होने में भी अपेक्षाकृत अधिक समय लेती हैं। इसके आधार पर पुरूष को चाहिए कि प्रथम संभोग की पहली बारी में अपने आपको नियंत्रित में रखें और स्त्री(नायिका) को पूर्ण उत्तेजित करने के बाद ही संभोग करें। अन्यथा पहले स्खलित होने से आपको नायिक के समक्ष शर्मिन्दा होने पड़ेगा, जोकि एक बुरा अनुभव हो सकता है।
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2. दूसरी बार पुरूष मंद हो जाता है। उसे पुनः तैयार होने में स्त्री की अपेक्षा अधिक समय लगता है, जबकि नायिका दूसरी आवृति में जल्द तैयार हो जाती है। स्खलित भी पहली आवृति की अपेक्षा जल्दी हो जाती है।
इसके आधार पर पुरूष को चाहिए कि प्रथम आवृति के सम्भोग के बाद अपने लिंग को साफ कपड़े से अच्छी प्रकार साफ व मूत्र करने के बाद कुनगुन पानी से धा लें। संभोग के बाद लिंग को ठंडे पानी से धोना हानिकारक है। धोने के बाद मिश्री मिला दूध एक गिलास गर्म-गर्म अवश्य लें। रसिकजनों को प्रतिदिन दूध का सेवन करना चाहिए। दूध लेने से पुनः उत्तेजित होने में अधिक समय नहीं लगता है।
3. जब तक नायिका पूर्ण कामातुर(संभोग के लिए इच्छुक) न हो, तब तक संभोग करना उचित नहीं है। अन्यथा शीघ्रपतन के शिकार हो जायेंगे।
4. कोमल अंगों वाली नायिका सामान्य स्पर्श आदि से उत्तेजित हो जाती है। वह कामानन्द का अनुभव भी शीघ्र करती है। परिणामतः स्खलित शीघ्र हो जाती है। इसके विपरीत कठोर अंगों वाली नायिका या जिसकी आवाज में भी कठोरता हो, वह देर से उत्तेजित होती हैं और देर से स्खलित होती है।
इस आधार पर नायक को चाहिए कि संभोग के प्रारम्भ से पहले कोमलांगी के अपेक्षा कठोरांगी के साथ कामक्रीड़ा, आलिंगन, कुच मर्दन, चुम्बन आदि में कुछ अधिक समय दें एवं नायिका के पूर्ण उत्तेजित होने पर ही संभोग करें। साथ ही स्वयं पर भी नियंत्रण रखें।
5. कठोरांगी नायिका यदि सामान्य कामक्रीड़ा से कामातुर न हो तो भगांकुर को अपनी अंगुलियों से सहलायें। स्त्री शीघ्र उत्तेजित हो जायेगी, लेकिन संभोग तभी करें जब नायिका भी इच्छुक हो।
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